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ऑक्टोबर, २०११ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

त्रिवेणी (हिंदी ) -- क्र. १-४

त्रिवेणी क्र. १ >>> बारिश की बुंदे भी कितनी बेईमान होती है. बस कुछ लम्हो की यहाँ मेहमान होती है.. . . . . ये आंसू मुझसे बेईमान क्यू नही होते ??       पुणे, ६ मार्च, २०११  -------------------------------------------------------------------------------- त्रिवेणी क्र. २ >>> कहते हैं आदमी पढेगा, तो उन्नत होगा, विचारों का दायरा बढेगा.. सोच बदलेगी, सरहदें मिटेगी, दिल-से-दिल मिलेंगे.. . . . . . . हम तो अब फेसबुक पर भी ग्रुप्स में जीने लगे हैं -------------------------------------------------------------------------------- त्रिवेणी क्र. ३ >>> आज पापा घर जरा देर से पहुँचे.. मोबाइल का नेटवर्क जॅम था.. . . . . . वजह वोही थी, बस 'तारीख' नयी थी -------------------------------------------------------------------------------- त्रिवेणी क्र. ४  >>> एक ही गाडी  में बैठे  हम दोनों , मंजिल की तरफ बढ़ रहे थे.. और बंद खिड़की के बाहर खुबसूरत नजारों का सिलसिला चला. . . . . .