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मे, २०१२ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

सालगिरह

हर बरस सालगिरह पर यूँ ही हँसते हँसते हर कोई उम्र में इक साल बढ़ा लेता है वक़्त एक सेंध लगाता हुआ आहिस्ता से उम्र के पेड़ से एक शाख चुरा लेता है वक़्त के अपार इतिहास में झाँको तो ज़रा कहाँ वर्तमान, कहाँ भूत, कहाँ भविष्य है उम्र बढ़ती नहीं घटती हैं, हर एक साल के बाद वक़्त आगे नहीं पीछे की तरफ़ चलता है वक़्त आज़ाद परिन्दा हैं, ये अमर है आज तक ये किसी ज़ंजीर से जकड़ा न गया तर्क और भावनाओं की सब कोशिशें नाकाम रहीं ये परिन्दा किसी शिकारी से पकड़ा न गया ज़िन्दगी तो ग़मों की किताब हैं दोस्त साल के बाद पन्ना जिसका उलट जाता है पढ़ चुके कितना इसे, बाक़ी बची है कितनी ऐसा सोचा तो दिल आँखों में सिमट आता है मौत का ज़िक्र भयानक है, मगर आज के दिन, उल्टी लटकी हुई तसवीर को कुछ सीधा करें फ़िक्र और  अहसास की इक और बुलन्दी छूकर आओ, कुछ देर तक माहौल को गंभीर करें..... !! -- मैंने मूल उर्दू नज़्म का हिंदुस्तानी(हिंदी+उर्दू, बोलचाल की भाषा) में अनुवाद किया है. कवी का नाम तो पता नहीं, लेकिन इतनी खूबसूरत नज़्म लिखने के लिए उन्हें शुक्रिया ज़रूर कहूँगा..

वही

जुनी काही पाने दुमडलेली स्वप्नांच्या वहीत... काही होत्या विस्मृतीत  गेलेल्या  कविता.. वेड्या वयातल्या वेड्या मनाच्या संहिता.. कोणाचे अल्लड स्मित  आठवणींच्या कुपीत.. काही रोजच गोंजारलेले मोरपिसांचे गुपित... थोडे शब्द बापुडे चिंब ओले आठवणींत.. काही भावना कोसळत्या जलप्रपातात ... होते काही मौक्तिकबिंदू गळालेले कातरवेळी... होती चाहूल लागलेली  कुणाची वेळी - अवेळी.. एक प्रयत्न उधाण वारा कवटाळण्याचा.. नि होता एक  प्रयत्न आसमंत गवसण्याचा होते काही क्षण रेंगाळलेले उंबर्‍यावर एक पिंपळपान भरकटलेले वार्‍यावर चाळता ती पाने  जाणीव झाली मजला.. संसार माझा स्वप्नांच्या सरणावरी  सजला.. वही जाळली मी आज माझ्या  स्वप्नांसहित ....