सार्थक? निरर्थक?
प्रतिक्रियावादी समाज में समाहित सारे क्रियाकलापों के, सारे होहल्लों के, सारे हुड़दंगों के मध्य में कोई इतना सुस्थिर कैसे रह सकता है? क्या यह स्थितप्रज्ञता है? या है निठल्लापन? संवेदनाओं के सागर में गोते लगाना ही क्या जीवन का सार्थक है? या निरर्थक है जीवन की सार्थकता का अनुसंधान? -संकेत