पोस्ट्स

सप्टेंबर, २०१८ पासूनच्या पोेस्ट दाखवत आहे

सार्थक? निरर्थक?

प्रतिक्रियावादी समाज में समाहित  सारे क्रियाकलापों के, सारे होहल्लों के, सारे हुड़दंगों के मध्य में कोई इतना सुस्थिर कैसे रह सकता है? क्या यह स्थितप्रज्ञता है? या है निठल्लापन?  संवेदनाओं के सागर में गोते लगाना ही क्या जीवन का सार्थक है? या निरर्थक है जीवन की सार्थकता का अनुसंधान? -संकेत

आम्हां न मिळे ब्लॉक

आम्हां न मिळे ब्लॉक। न मिळेच बॅन। जालियाची व्हाण। न मिळे आम्हां।। कपाळाची आठी। हातातली काठी। एकमेकां पाठी। न कळे आम्हां।। रोज रोज टॅगा। हॅशटॅग आणा। रोजचा बहाणा । छळण्याचा।। स्वाम्या म्हणे बुक। गुड गुड ठेवा। आणि खावा मेवा। सर्व घरी।।  - सर्वमेळा(स्वामी संकेतानंद)