ये ज़मीं हैं सितारों की

हम कहें क्या कहानी अजी , बदगुमाँ इन बयारों की
जब समझ ही न पाए ज़ुबां, आज भी यह इशारों की

चंद बूँदें लहू की गई , तो क़यामत नहीं आई
तलब तो मिटेगी सही, कुछ लहू के बिमारों की

अब यहाँ जिस्म तो बिक गया, मोल तो हो अनाजों का 
ये कहानी नहीं काफिरों , हैं हकीकत बज़ारों की

बख्श दो फिसल जो हम गए, आपकी आशिकी में यूँ
कुछ खता तो हमारी रही, कुछ रही इन बहारों की

आज अखबार पढ़ के मुझे, ये पता तो चला यारों
ये नहीं अब हमारी रही, ये ज़मीं हैं सितारों की 

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