कंपूची लक्षणे

समास पहिला: कंपूलक्षण
ॐ नमोजी आंजानरा | लक्ष-लक्ष तारस्वरा | कृपादृष्टी जालवीरा । अवलोकावें ||१||
तुज नमूं गमभन | श्रीबराहा भक्तगण | गुगल इमे तो अन| तुझी रूपे ||२||
वंदून गुगलचरण | करून विकीस्मरण | लाभार्थ कंपूलक्षण | बोलिजेल ||३||
येक कंपू येक ट्रोजनकंपू | उभय लक्षणीं झोडपू | श्रोतीं सादर थोपू | केला पाहिजे ||४||
ट्रोजनकंपूचे लक्षण | पुढिले समासीं निरूपण | सावध होऊनि विचक्षण | परिसोत पुढें ||५||
आतां प्रस्तुत विचार | लक्षणें सांगतां अपार | परि कांहींयेक तत्पर | होऊन ऐका ||६||
जे जालवीर जन | जयांस नाहीं सभाज्ञान | जे केवळ विद्वान | त्यांचीं लक्षणें ||७||
आपुली भुमिका खरी| दाखवोनि विचारी |परकी ती झिडकारी | तो येक कंपू ||८||
देऊन सर्व स्रोत | गुगलून विकी फ़क्त |म्हणवे प्रज्ञावंत| तो येक कंपू||९||
परायडीशी डूख धरी | खवतून उद्धार करी | कमेंट देई विखारी | तो येक कंपू ||१०||
कंपूवीराशी पंगा | घेता करी दंगा | उधळी नाना रंगा | तो येक कंपू ||११||
एकमेकां करे स्तुती |हापिसे भोगी विपत्ति | सांगे कंपूची कीर्ती | तो येक कंपू ||१२||
गंभीर चर्चेवरी | धाग्याचा काश्मीर करी | चालवे टवाळखोरी | तो येक कंपू ||१३||
आपुलीं धरूनियां दुरी | डुआयडीशी करी मैत्री | परन्यून बोले खतरी | तो येक कंपू ||१४||
अमेरिकी वारी करी | खाद्यवर्णने धागे भरी | समस्तांस बोर करी | तो येक कंपू ||१५||
आपला जो धागा| तेथेंचि कमेंट टाका| इतरत्र करी त्रागा | तो येक कंपू ||१६||
आपण वाचीना धागा | मी पयल्याचा त्रागा| जसा घोड्यांचा पागा | तो येक कंपू||१७||
ऐसीं हें कंपूलक्षणें | श्रवणें चातुर्य बाणे | चीत्त देउनि जालजणे | ऐकती सदा ||१८||
लक्षणें अपार असती | परी कांहीं येक येथामती | लाभार्थ बोलिलें श्रोतीं | क्षमा केलें पाहिजे ||१९||
उत्तम लक्षणें घ्यावीं | कंपूलक्षणें त्यागावीं | जालमॅनर्स राखावीं | कळविलें ||२०||
इति श्रीजालबोधे गुरुशिष्यसंवादे कंपूलक्षणनाम समास पहिला || २.१ ||


--- स्वामी संकेतानंद

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