जी हाँ, मै एक आम आदमी हूँ..
जी हाँ, मैं एक आम आदमी हूँ
अब आपको पता चल गया होगा
देख के ताकद मेरे आवाज़ की
अब आपका दिल जल गया होगा
जी हाँ, मैं वो ही आम आदमी हूँ
जो कल तक डरता-सहमता था
हालात पे रोता, रोज मर के जीता था
जिसकी आवाज़ सैकडों बार दबायी गई
और हजारों बार जो छल गया होगा
जी हाँ, मैं वो ही आम आदमी हूँ
आपके घोषणापत्र में जिसका चेहरा हैं
आपके हर चुनाव में जो एक मोहरा हैं
आज मैंने भी अपनी एक चाल चली
तो आपका शतरंज हिल गया होगा
जी हाँ, मैं एक आम आदमी हूँ
मैं प्रजातंत्र को बनाने वाली प्रजा हूँ
आप नहीं श्रीमान, मैं यहाँ का राजा हूँ
आज मैंने अपना सिंहासन माँगा हैं
तो आपका अभिमान ढल गया होगा
जी हाँ, मैं एक आम आदमी हूँ
और मैं जानता हूँ ये देश मेरा हैं
मुझसे ही नवनिर्माण का सबेरा हैं
आप इस सूरज को छुपा नहीं सकते
कोशिश में आपका हाथ जल गया होगा..
जी हाँ, मै एक आम आदमी हूँ
अब आपको पता चल गया होगा..
देख के ताकद मेरे आवाज़ की
अब आपका दिल जल गया होगा..
-- बेंगलुरू,
२७ अगस्त, २०११
सुपर्ब लिहिलंयस स्वामी !!
उत्तर द्याहटवा>> आज मैने आपण सिंहासन माँगा है तो आपका अभिमान ढल गया होगा
एकदम परफेक्ट !!
आभार्स रे हेरम्बा !! लोकसभेचे काम बघत होतो.. त्यांनी जेव्हा " सेन्स ऑफ़ हाऊस " म्हणून अण्णांच्या ३ मागण्या मान्य केल्या, तेव्हाच ही कविता सुचली.. It is not only the sense of house, but also sense of Junta, नाही का ?
उत्तर द्याहटवाधन्यवाद रे !
स्वामी खूपच आवडली कविता!सर्व वाचकांच्या मनातले आहे कवितेत...
उत्तर द्याहटवास्वामी,मस्तच लिहल आहेस... आवडलं...
उत्तर द्याहटवाशन्यवाद श्रियाताई ! :)
उत्तर द्याहटवाधन्यवाद देवेन ! :)